भारत त्योहारों की भूमि है। यहाँ प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपरा और सामाजिक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक प्रमुख पर्व है नवरात्रि। साल में दो बार आने वाला यह पर्व शक्ति की उपासना का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है और भक्त अपने-अपने तरीके से व्रत, अनुष्ठान व भक्ति में लीन रहते हैं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि हम नवरात्रि क्यों मनाते हैं? इसका उत्तर धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और ऐतिहासिक कथाओं में छिपा है।
नवरात्रि का अर्थ
‘नवरात्रि’ दो शब्दों से मिलकर बना है – नव अर्थात नौ और रात्रि अर्थात रातें। यानी कुल मिलाकर यह पर्व नौ रातों और दस दिनों तक चलता है। दशवें दिन को विजयादशमी या दशहरा कहा जाता है। नवरात्रि का अर्थ केवल देवी की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश, अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है।
नवरात्रि मनाने के धार्मिक कारण
1. देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार राक्षसों के राजा महिषासुर ने कठोर तप करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि कोई भी पुरुष उसे परास्त नहीं कर पाएगा। इस वरदान के बाद वह अत्याचारी हो गया और तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा। देवताओं ने मिलकर शक्ति की आराधना की और मां दुर्गा प्रकट हुईं। नौ दिनों तक भयंकर युद्ध के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। तभी से यह पर्व सत्य और धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है।
2. श्रीराम और रावण का युद्ध
रामायण के अनुसार भगवान राम ने लंका विजय से पहले शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की थी। देवी की कृपा से ही उन्हें विजय प्राप्त हुई और दशवें दिन रावण का वध किया गया। तभी से दशहरा और नवरात्रि का महत्व और भी बढ़ गया।
3. शक्ति की साधना
नवरात्रि को शक्ति की साधना का पर्व कहा जाता है। दुर्गा के नौ रूप—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री—इनकी पूजा करके साधक आत्मबल, साहस, ज्ञान, विवेक और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
नवरात्रि मनाने के सांस्कृतिक कारण
1. ऋतु परिवर्तन का समय
चैत्र और शारदीय नवरात्रि दोनों ही ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं। चैत्र नवरात्रि में गर्मी की शुरुआत होती है और शारदीय नवरात्रि में शरद ऋतु का आगमन होता है। इस समय शरीर को शुद्ध रखने और नई ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उपवास का महत्व है।
2. लोक संस्कृति और परंपराएँ
गुजरात में गरबा और डांडिया, बंगाल में दुर्गा पूजा, उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा, महाराष्ट्र में घटस्थापना—ये सभी सांस्कृतिक रूप नवरात्रि को विविधता और एकता का पर्व बनाते हैं।
3. समाज में एकजुटता
नवरात्रि के दौरान मेलों, उत्सवों और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। इससे समाज में भाईचारा, सहयोग और एकता की भावना प्रबल होती है।
नवरात्रि और आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि केवल बाहरी उत्सव नहीं है, बल्कि यह आंतरिक साधना का समय है।
- उपवास और संयम से शरीर शुद्ध होता है।
- जप, ध्यान और भक्ति से मन एकाग्र होता है।
- दुर्गा सप्तशती और अन्य ग्रंथों का पाठ व्यक्ति के आत्मबल को बढ़ाता है।
- यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अगर हम मन के नकारात्मक विचारों (महिषासुर) को हराना चाहते हैं, तो हमें भीतर की शक्ति (दुर्गा) को जगाना होगा।
नवरात्रि के नौ दिन और नौ देवी
प्रत्येक दिन एक देवी की पूजा की जाती है—
- शैलपुत्री – स्थिरता और शक्ति का प्रतीक
- ब्रह्मचारिणी – तप और संयम का प्रतीक
- चंद्रघंटा – शांति और साहस का प्रतीक
- कूष्मांडा – सृजन और ऊर्जा का प्रतीक
- स्कंदमाता – मातृत्व और करुणा का प्रतीक
- कात्यायनी – बल और न्याय की देवी
- कालरात्रि – भय का नाश करने वाली
- महागौरी – पवित्रता और सौम्यता की प्रतीक
- सिद्धिदात्री – सभी सिद्धियों और शक्तियों की दात्री
इन नौ स्वरूपों की उपासना से भक्त जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और संतोष प्राप्त करता है।
नवरात्रि और विज्ञान
व्रत रखने से शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। उपवास के दौरान फलाहार, दूध, सूखे मेवे आदि का सेवन किया जाता है, जो शरीर को ऊर्जा और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। इसके अलावा ध्यान और भजन से मानसिक तनाव कम होता है।
नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि अगर हम श्रद्धा, संयम और आत्मबल के साथ आगे बढ़ें, तो किसी भी कठिनाई (महिषासुर) को परास्त किया जा सकता है। यही कारण है कि नवरात्रि को भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में बसे भारतीय बड़े उत्साह से मनाते हैं।